Supreme Court Big Comment: वैवाहिक विवाद की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बेटी के पास अपने माता-पिता से शिक्षा का खर्च उठाने का वैध अधिकार है. बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है. इसके लिए माता-पिता को अपने वित्तीय संसाधनों की सीमा के भीतर आवश्यक धनराशि प्रदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करके एक जोड़े को तलाक देते हुए कहा कि समझौते के अनुसार, पति ने अलग रह रही पत्नी को 30 लाख रुपये और बेटी को 43 लाख रुपये के दो हिस्सों में 73 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की थी. पक्षकारों के वकील ने न्यायालय को सूचित किया कि पति ने पत्नी को 15-15 लाख रुपये की दो किश्तों में ये रकम अदा कर दी है.
तलाक लेने वाले जोड़े के वकील ने बताया कि आयरलैंड में पढ़ रही बेटी ने 43 लाख रुपये लेने से इनकार करते हुए अपने पिता को रकम वापस लेने पर जोर दिया है. वो ये 43 लाख रुपये नहीं रखना चाहती. हालांकि, पिता ने 43 लाख रुपये लेने से इनकार कर दिया है.
इस पर पीठ ने कहा कि हमारा मानना है कि 43 लाख रुपये एक ऐसी राशि है, जिसकी बेटी कानूनी तौर पर हकदार है. बेटी होने के नाते, उसे अपने माता-पिता से शिक्षा का खर्च सुरक्षित करने का एक अप्रतिदेय, कानूनी रूप से लागू करने योग्य, और वैध अधिकार है. हम केवल इतना ही मानते हैं कि बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है, जिसके लिए माता-पिता को अपने वित्तीय संसाधनों की सीमा के भीतर आवश्यक धनराशि प्रदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है.
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