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Wednesday, May 1, 2024

चार्जशीट ऐसी हो कि कोर्ट साफ तौर पर समझ सके कि किस आरोपी ने कौन सा अपराध किया : सुप्रीम कोर्ट

आपराधिक मामलों में चार्जशीट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फैसले में कहा है कि, जांच एजेंसी द्वारा दायर चार्जशीट (charge sheet) में साक्ष्य की प्रकृति और मानक ऐसे होने चाहिए कि यदि साक्ष्य साबित हो जाए तो अपराध स्थापित हो जाना चाहिए. चार्जशीट में सभी कॉलमों में स्पष्ट और पूर्ण प्रविष्टियां होनी चाहिए ताकि अदालतें स्पष्ट रूप से समझ सकें कि किस आरोपी ने कौन सा अपराध किया है.  

कोर्ट ने कहा कि, जांच एजेंसी के सामने बयान और संबंधित दस्तावेजों को गवाहों की सूची के साथ संलग्न किया जाना चाहिए. अपराध में हर आरोपी द्वारा निभाई गई भूमिका का अलग से और स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए.  

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा, एक संपूर्ण चार्जशीट ऐसी होनी चाहिए कि ट्रायल आरोपी या अभियोजन पक्ष पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना आगे बढ़ सकें. चार्जशीट में स्पष्ट किए जाने वाले सबूतों की प्रकृति और मानक को प्रथम दृष्टया यह दिखाना चाहिए कि यदि सामग्री और सबूत साबित हो जाते हैं तो अपराध स्थापित हो जाए.

उन्होंने कहा कि, चार्जशीट तब पूरा होती है जहां कोई मामला आगे के सबूतों पर निर्भर नहीं होता है. चार्जशीट के साथ रिकॉर्ड पर रखे गए साक्ष्य और सामग्री के आधार पर ट्रायल होना चाहिए. यह मानक अत्यधिक तकनीकी या मूर्खतापूर्ण नहीं है, बल्कि देरी के साथ-साथ लंबे समय तक कारावास के कारण निर्दोष लोगों को उत्पीड़न से बचाने के लिए एक व्यावहारिक संतुलन है. चार्जशीट में सभी कॉलमों में स्पष्ट और पूर्ण प्रविष्टियां होनी चाहिए ताकि अदालतें स्पष्ट रूप से समझ सकें कि किस आरोपी ने कौन सा अपराध किया है. 

अदालत ने कहा है कि धारा 161 के तहत जांच एजेंसी के सामने बयान और संबंधित दस्तावेजों को गवाहों की सूची के साथ संलग्न किया जाना चाहिए. अपराध में आरोपी द्वारा निभाई गई भूमिका का आरोप पत्र में प्रत्येक आरोपी व्यक्ति के लिए अलग से और स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए. 

पीठ ने विवादित संपत्ति पर कई पक्षों द्वारा दायर मामलों से उत्पन्न अपीलों का निपटारा करते समय ये बातें कही. उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई आपराधिक शिकायतों में धोखाधड़ी, विश्वासघात और आपराधिक साजिश के आरोप शामिल थे.  

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में एफआईआर (FIR) और मजिस्ट्रेट समन को रद्द करने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अंततः मृत व्यक्ति के बेटों द्वारा दायर अपील को अनुमति दे दी, जिनकी संपत्ति पर लड़ाई चल रही थी. अन्य अभियुक्तों को गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी गई. साथ ही उनके खिलाफ जारी समन आदेश को नए सिरे से फैसले के लिए मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया गया है. 



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